देवशयनी एकादशी: जब भगवान विष्णु सो जाते हैं और चातुर्मास शुरू होता है

साक्षी चतुर्वेदी
साक्षी चतुर्वेदी

हिंदू पंचांग के अनुसार, आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी कहते हैं। इस दिन भगवान विष्णु क्षीरसागर में शयन करते हैं, और चार महीनों तक यहीं विश्राम करते हैं। यह दिन चातुर्मास की शुरुआत का प्रतीक होता है — एक ऐसा काल जिसमें धार्मिक, वैवाहिक और मांगलिक कार्यों पर विराम लगा होता है। पौराणिक कथाओं, धार्मिक परंपराओं और वैज्ञानिक तथ्यों के संदर्भ में यह एकादशी अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है।

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पौराणिक पृष्ठभूमि: वामन अवतार और राजा बलि की कथा

पद्म पुराण के अनुसार, इस दिन भगवान विष्णु ने वामन रूप में दानवराज बलि से तीन पग भूमि मांगी। बलि ने अपना सब कुछ समर्पित कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप भगवान ने उसे पाताल लोक का अधिपति बनाया और वचन दिया कि वे चातुर्मास के दौरान वहीं निवास करेंगे। लक्ष्मीजी ने बलि को राखी बांधकर विष्णु को मुक्त करवाया, लेकिन उनका वचन बना रहा।

हरिशयन और योगनिद्रा: चातुर्मास का वैज्ञानिक और धार्मिक पक्ष

चातुर्मास का समय वर्षा ऋतु के साथ आता है। भविष्य और ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार, सूर्य और चंद्रमा का प्रभाव इस समय मंद हो जाता है। आयुर्वेद और विज्ञान मानते हैं कि इस मौसम में शरीर की पाचन अग्नि कमजोर होती है, जिससे रोग फैलने की संभावना अधिक रहती है। इसी कारण यह समय संयम, व्रत और साधना का माना गया है।

व्रत और धार्मिक आचार: संयम और संकल्प का समय

देवशयनी एकादशी से लेकर देवोत्थानी एकादशी तक का समय विवाह, यज्ञोपवीत, गृह प्रवेश और अन्य मांगलिक कार्यों के लिए वर्जित होता है। व्रती व्यक्ति को संयमित जीवन, सात्विक भोजन और आध्यात्मिक साधना की सलाह दी जाती है। यद्यपि आधुनिक युग में ये नियम लचीले हो गए हैं, फिर भी आध्यात्मिक लाभ के लिए इसका पालन उपयोगी माना जाता है।

प्रसिद्ध कथा: राजा मांधाता और दुर्भिक्ष का समाधान

सतयुग में चक्रवर्ती सम्राट राजा मांधाता के राज्य में अकाल पड़ा। ब्रह्मर्षि अंगिरा के परामर्श पर उन्होंने देवशयनी एकादशी का व्रत किया, जिसके प्रभाव से वर्षा हुई और राज्य में समृद्धि लौटी। यह कथा इस पर्व की फलप्रदता और धार्मिक शक्ति को प्रमाणित करती है।

व्रत का आध्यात्मिक फल

ब्राह्मण वैवर्त पुराण के अनुसार, इस एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति के समस्त पाप नष्ट होते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह व्रत मनोकामनाओं की पूर्ति का माध्यम भी है और आध्यात्मिक उन्नति की राह खोलता है।

धर्म, विज्ञान और विश्वास का संगम

देवशयनी एकादशी केवल एक तिथि नहीं, बल्कि आत्मशुद्धि, संयम और विष्णु भक्ति का अवसर है। यह व्रत जीवन में संतुलन, स्वास्थ्य और अध्यात्म का समन्वय स्थापित करता है। चातुर्मास की इस अवधि को एक तप, व्रत और आत्मनिरीक्षण के रूप में देखने की परंपरा आज भी प्रासंगिक है।

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